शक्ति, आस्था और सम्मान का ताना-बाना है उच्याणा। मानव जीवन में हर दिन समस्याओं से जूझना एक आम बात है। हर आदमी, हर परिवार किसी न किसी समस्या से जूझता है और उसका समाधान अलग-अलग तरीके से करता है। हमारी उत्तराखंड की धरती में समस्या समाधान का एक और रास्ता भी है, जो उच्याणा। के माध्यम से होता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि उत्तराखंड की धरा देवभूमि है, यहाँ अपने देवी-देवताओं को सर्वोपरि माना जाता है। तो फिर किसी समस्या के समाधान में देवी-देवताओं को कैसे प्राथमिकता नहीं दी जाएगी?
उत्तराखंड की धरा में जब कोई परिवार किसी तरह की कोई समस्या आती है, वो समस्या आर्थिक हो सकती है, सेहत को लेकर हो सकती है, लगातार हो रहे नुकसान से संबंधित हो सकती है, या कोई अन्य प्रकार की हो, और परिवार द्वारा हर संभव कोशिश करने के बाद भी समस्या का कोई हल नहीं निकलता, तो परिवार उच्याणा का सहारा लेते हैं जिससे उक्त समस्या का हल निकल सकता है।
कैसे करते हैं उच्याणा। का प्रयोग? इसके लिए आधी कटोरी चावल में सवा एक, ग्यारह, इक्कीस या ज़्यादा से ज़्यादा 51रुपये रखकर उसे अपने घर में पूजा वाले स्थान में रखते हुए अपने देवी-देवताओं को सच्चे मन से याद करके कहा जाता है कि अगर इस समस्या का कारण दैवीय है, देवताओं की नाराज़गी है या कोई बाहरी बुरी आत्मा का प्रभाव है तो बताना। अगर उच्याणा रखने के बाद समस्या का समाधान हो जाता है तो तुरंत इसका स्थायी उपचार करना पड़ता है, क्योंकि उच्याणा से प्राप्त हल अस्थायी होता है। इसके विपरीत, यदि उच्याणा रखने के बाद भी आपकी समस्या ज्यों की त्यों है तो फिर इस समस्या के पीछे कोई दैविक कारण नहीं है।
जय उत्तराखंड।