पिथौरागढ़ किला, जिसे गोरखा किला और लंदन फोर्ट के नाम से भी जाना जाता है, पिथौरागढ़ शहर की सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक इमारतों में से एक है। यह किला एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और यहाँ से पिथौरागढ़ की पूरी सोर घाटी का शानदार और मनोरम दृश्य दिखाई देता है।
इतिहास और निर्माण
इस किले के निर्माण को लेकर इतिहासकारों के बीच अलग-अलग राय है:
गोरखा शासन: अधिकांश स्रोतों के अनुसार, इस किले का निर्माण 18वीं शताब्दी में गोरखा शासकों ने करवाया था, जब उन्होंने कुमाऊं पर विजय प्राप्त की थी। 1791 में गोरखाओं ने इसे सुरक्षा की दृष्टि से बनवाया था और इसका नाम बाउलकीगढ़ रखा था। यह गोरखा सेना का एक महत्वपूर्ण सैन्य ठिकाना था।
चंद शासक: कुछ अभिलेखों में यह भी उल्लेख मिलता है कि इसका निर्माण चंद वंश के क्षेत्रीय शासक पीरू गुसाईं ने करवाया था।
गोरखाओं के बाद अंग्रेजों का शासन: 1815 में, जब अंग्रेजों ने गोरखाओं को हराया और कुमाऊं पर कब्ज़ा कर लिया, तो यह किला उनके नियंत्रण में आ गया। अंग्रेजों ने इसका नाम लंदन फोर्ट रखा और इसे अपना प्रशासनिक केंद्र बनाया।
किले की बनावट और महत्व
सामरिक महत्व: यह किला अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण बहुत महत्वपूर्ण था। यहाँ से पूरी घाटी पर नज़र रखी जा सकती थी, जिससे यह सुरक्षा के लिए एक आदर्श स्थान था। वास्तुकला: किले की वास्तुकला में गोरखा शैली का प्रभाव दिखाई देता है। इसकी मजबूत दीवारें और बंदूक चलाने के लिए बनाए गए 152 छेद (मचान) इसकी सुरक्षा को दर्शाते हैं। आधुनिक उपयोग: अंग्रेजों के जाने के बाद, यह किला कुछ समय तक उपेक्षित रहा। बाद में इसका उपयोग सरकारी कार्यालयों और तहसील के काम के लिए किया गया। आज, यह किला एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में जाना जाता है और पर्यटकों के लिए खुला है।
वर्तमान स्थिति
वर्तमान में, किला जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है, लेकिन सरकार इसके रखरखाव और मरम्मत का काम कर रही है। किले के अंदर एक तहखाना और कुछ खंडहरनुमा संरचनाएं भी हैं, जो इसके समृद्ध इतिहास की कहानी सुनाती हैं। यह किला इतिहास, प्रकृति और वास्तुकला में रुचि रखने वाले लोगों के लिए एक खास जगह है।
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