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उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष की समीक्षा -

देहरादून/नैनीताल, 23 नवंबर: देवभूमि उत्तराखंड में इन दिनों मानव-वन्यजीव संघर्ष (Human-Wildlife Conflict) की बढ़ती घटनाओं ने आम नागरिकों में दहशत फैला दी है। राज्य के पर्वतीय और तलहटी क्षेत्रों में तेंदुआ (Leopard) और भालू (Bear) के हमले आम होते जा रहे हैं, जिसके कारण कई निर्दोष लोग अपनी जान गंवा चुके हैं या गंभीर रूप से घायल हुए हैं।

🚨 संकट की गहराई

उत्तराखंड वन विभाग के अनौपचारिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ महीनों में वन्यजीवों के हमलों में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह समस्या अब केवल ‘जंगल के पास’ तक सीमित नहीं रही है, बल्कि वन्यजीव अब भोजन और आवास की तलाश में सीधे रिहायशी इलाकों में घुसपैठ कर रहे हैं।

वन्यजीव विशेषज्ञ, डॉ. आर.के. सिंह ने बताया, “वन्यजीवों के प्राकृतिक आवासों का तेजी से सिकुड़ना, अवैध अतिक्रमण, और जंगलों में शिकार की कमी मुख्य कारण हैं। एक तेंदुआ या भालू तब तक हमला नहीं करता जब तक उसे जान का खतरा महसूस न हो या वह अत्यधिक भूखा न हो।”

 मुख्य रूप से प्रभावित क्षेत्र

 

  • पौड़ी, रुद्रप्रयाग, और टिहरी के दूरदराज के गाँवों में तेंदुए के हमले की घटनाएं अधिक सामने आ रही हैं।

  • नैनीताल और अल्मोड़ा के ऊपरी इलाकों में भालू के द्वारा फलों के बागानों और खेतों में प्रवेश करने के मामले बढ़ रहे हैं, जिससे किसानों में भय व्याप्त है।

  • अक्सर ये वन्यजीव बच्चों और पालतू पशुओं को अपना निशाना बनाते हैं, जिसके बाद स्थानीय लोग विरोध प्रदर्शन के लिए मजबूर हो जाते हैं।

 संघर्ष के मूल कारण

 

  1. विकास बनाम पर्यावरण: पर्यटन और आधारभूत संरचना के विकास के लिए हो रहे निर्माण ने वन्यजीवों के पारगमन मार्गों (Wildlife Corridors) को बाधित किया है।

  2. पर्यावरण असंतुलन: लगातार बढ़ते वन आग (Forest Fires) से जंगलों की उत्पादकता घटी है, जिससे भोजन की कमी हुई है।

  3. आसान शिकार: ग्रामीण क्षेत्रों में खुली छत वाले घरों के पास पालतू पशुओं की आसान उपलब्धता भी तेंदुओं को आकर्षित करती है।

 प्रशासन की प्रतिक्रिया और मांगें

स्थानीय प्रशासन ने प्रभावित क्षेत्रों में गश्त बढ़ा दी है और वन विभाग की टीमों को ट्रैंक्विलाइजर (Tranquilizer) गन के साथ तैनात किया गया है। हालांकि, स्थानीय निवासियों की मांग है:

  • त्वरित मुआवजा: हमले में हताहतों के परिवारों को मुआवजा प्रक्रिया में तेजी लाई जाए।

  • जागरूकता अभियान: गाँवों में वन्यजीवों से बचाव के लिए ठोस और निरंतर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएं।

  • सफलतापूर्वक स्थानान्तरण: हमलावर वन्यजीवों को पकड़कर आबादी से दूर सुरक्षित स्थानों पर छोड़ा जाए।


आगे क्या?

राज्य सरकार इस गंभीर चुनौती से निपटने के लिए एक समग्र नीति बनाने की तैयारी कर रही है, जिसमें वन संरक्षण, ग्रामीण सुरक्षा और वन्यजीव प्रबंधन को एक साथ जोड़ा जाएगा। यह देखना होगा कि क्या ये प्रयास उत्तराखंड को इस विकराल होते संघर्ष से मुक्ति दिला पाते हैं।

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