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संघर्ष का दूसरा नाम था दिवाकर भट्ट -
उत्तराखंड के पूर्व कैबिनेट मंत्री और उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) के संस्थापक सदस्य दिवाकर भट्ट का निधन हो गया है। उनका निधन 25 नवंबर, 2025 को हरिद्वार स्थित उनके आवास पर हुआ, जब वह 79 वर्ष के थे। लंबी बीमारी से पीड़ित दिवाकर भट्ट का इलाज देहरादून के एक अस्पताल में चल रहा था। उनके निधन से उत्तराखंड की राजनीति और राज्य आंदोलन में गहरी शोक की लहर है।
एक वरिष्ठ और सम्मानित नेता, दिवाकर भट्ट को उनके दृढ़ संकल्प, संघर्ष और उत्तराखंड राज्य के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान के लिए याद किया जाएगा। वह एक ‘फील्ड मार्शल’ के रूप में जाने जाते थे।
खबर का शीर्षक: उत्तराखंड के ‘फील्ड मार्शल’ दिवाकर भट्ट नहीं रहे, राज्य आंदोलन के इतिहास का एक अध्याय समाप्त।
दिवाकर भट्ट: एक जुझारू नेता की जीवनी
दिवाकर भट्ट का जन्म 1946 में हुआ था। युवावस्था से ही वह उत्तराखंड राज्य के लिए संघर्ष में सक्रिय रहे। उनका राजनीतिक जीवन उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) के संस्थापक सदस्य के रूप में शुरू हुआ।
  • राजनीतिक करियर:
    • 2007 में वह देवप्रयाग सीट से विधायक चुने गए।
    • उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार में राजस्व मंत्री के रूप में कार्य किया।
    • 2012 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर भी चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए।
    • 2022 में उन्होंने एक बार फिर यूकेडी के सिंबल पर चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाए।
    • वह यूकेडी के केंद्रीय अध्यक्ष भी रहे।
  • उत्तराखंड के लिए योगदान:
    • राज्य आंदोलन में सक्रियता: दिवाकर भट्ट को उत्तराखंड राज्य के लिए सबसे जुझारू और समर्पित नेताओं में से एक माना जाता है। उन्होंने राज्य के निर्माण के लिए कई महत्वपूर्ण आंदोलन चलाए, जिनमें खैट पर्वत आंदोलन और श्रीयंत्र टापू आंदोलन शामिल हैं।
    • आंदोलन के अनोखे तरीके: दिवाकर भट्ट अपने अनोखे और साहसी आंदोलन के लिए जाने जाते थे। उन्होंने तत्कालीन सरकारों का ध्यान खींचने के लिए खैट पर्वत जैसी दुर्गम चोटियों पर बैठकर आंदोलन किए।
    • राज्य गठन के बाद भी संघर्ष: राज्य के गठन के बाद भी उनका संघर्ष जारी रहा। 2002 में उन्होंने राज्य आंदोलनकारियों पर दर्ज मुकदमों को वापस लेने की मांग को लेकर जेल में रहते हुए भी संघर्ष किया।
    • भू-कानून में भूमिका: उन्होंने राज्य के लिए सख्त भू-कानून बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अंतिम विदाई: 26 नवंबर, 2025 को हरिद्वार के खड़खड़ी श्मशान घाट पर राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान उनके बेटे ललित भट्ट ने उन्हें मुखाग्नि दी। अंतिम यात्रा में उत्तराखंड के कई वरिष्ठ नेताओं, यूकेडी के कार्यकर्ताओं और उनके समर्थकों ने भाग लिया और नम आंखों से उन्हें श्रद्धांजलि दी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया और राज्य के निर्माण में उनके योगदान को याद किया।
दिवाकर भट्ट का निधन उत्तराखंड के लिए एक बड़ी क्षति है। राज्य के प्रति उनका समर्पण और संघर्ष हमेशा याद किया जाएगा।

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