अनुसूया देवी मंदिर: एक संक्षिप्त परिचय
अनुसूया देवी मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में गोपेश्वर-चोपटा मोटर मार्ग पर मंडल गांव के पास स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर सती अनुसूया को समर्पित है, जो महान ऋषि अत्रि मुनि की पत्नी थीं। इस मंदिर को संतान प्राप्ति के लिए एक बेहद पवित्र और शक्तिशाली स्थान माना जाता है, जहाँ हर साल हज़ारों निःसंतान दंपत्ति आशीर्वाद लेने आते हैं।
पौराणिक कथा और महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार त्रिदेवियों (देवी लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती) ने अपने पतियों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) को सती अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए भेजा। जब तीनों देवता साधु के वेश में अनुसूया के पास आए, तो अनुसूया ने अपने सतीत्व के बल पर उन्हें बालक बना दिया। बाद में, त्रिदेवियों के अनुनय-विनय पर, अनुसूया ने उन्हें फिर से उनके मूल रूप में लौटा दिया। इन तीन देवताओं के अंश से ही भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ। मंदिर में भगवान दत्तात्रेय की भी पूजा की जाती है। यही कारण है कि यह स्थान संतान सुख की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है।
मंदिर तक कैसे पहुँचें?
यह मंदिर पूरी तरह से मोटर मार्ग से जुड़ा नहीं है। आपको मंडल गांव तक गाड़ी से जाना होगा और उसके बाद पैदल यात्रा करनी होगी।
- सड़क मार्ग: आप ऋषिकेश या देहरादून से बस या टैक्सी द्वारा गोपेश्वर तक पहुँच सकते हैं। गोपेश्वर से मंडल गांव लगभग 13 किमी दूर है, जिसके लिए आप टैक्सी ले सकते हैं।
- पैदल यात्रा: मंडल गांव से मंदिर तक की यात्रा लगभग 5 से 6 किलोमीटर की है। यह एक मध्यम-कठिनाई (moderate difficulty) वाला ट्रेक है जिसमें खड़ी चढ़ाई है। इस ट्रेक को पूरा करने में लगभग 3-4 घंटे लगते हैं। रास्ते में घने जंगल और सुंदर प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलते हैं। मंदिर से लगभग 2 किमी की दूरी पर अत्रि मुनि का आश्रम और एक भव्य झरना भी है, जहाँ भी श्रद्धालु दर्शन के लिए जाते हैं।
मंदिर की वास्तुकला और अन्य आकर्षण
यह मंदिर पारंपरिक कत्यूरी शैली में बना हुआ है। मंदिर परिसर में देवी अनुसूया की भव्य पाषाण मूर्ति के अलावा, गणेश जी, शिव, पार्वती और दत्तात्रेय की भी मूर्तियां स्थापित हैं।
पैदल रास्ते में आपको 6वीं शताब्दी के कुछ प्राचीन शिलालेख (inscriptions) भी देखने को मिलते हैं, जो इस क्षेत्र के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं।
घूमने का सबसे अच्छा समय
अनुसूया देवी मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय मई से जून और सितंबर से नवंबर के बीच का है। इस दौरान मौसम सुहावना रहता है और ट्रेकिंग करना आसान होता है। भारी बारिश के मौसम (जुलाई-अगस्त) में भूस्खलन के खतरे के कारण यहाँ की यात्रा करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, और सर्दियों में (दिसंबर-फरवरी) भारी बर्फबारी हो सकती है।
दत्तात्रेय जयंती और मेला
हर साल दिसंबर के महीने में दत्तात्रेय जयंती के अवसर पर यहाँ एक भव्य दो दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे अनुसूया मेला या नौदी मेला भी कहा जाता है। इस मेले में दूर-दूर से श्रद्धालु और निःसंतान दंपत्ति अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं। कहा जाता है कि इस रात, माता निःसंतान दंपत्तियों को स्वप्न में दर्शन देकर संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती हैं। इस दिन रात भर जागरण और पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है।
Jai Ho