उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू होने के बाद लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े नियमों में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। इन बदलावों का मुख्य उद्देश्य धोखे से, जबरन या पहले से शादीशुदा होते हुए लिव-इन में रहने वालों को कड़ी सजा देना है, जिससे महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा की जा सके।
प्रमुख बदलाव और प्रावधान:
- अनिवार्य रजिस्ट्रेशन: उत्तराखंड में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों के लिए इसका रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है। यह रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन या ऑफलाइन किया जा सकता है सख्त सजा: यदि कोई जोड़ा 1 महीने से ज़्यादा समय तक लिव-इन में रहता है और इसका रजिस्ट्रेशन नहीं कराता है, तो मजिस्ट्रेट द्वारा उन्हें 3 महीने तक की जेल या ₹10,000 का जुर्माना या दोनों की सज़ा दी जा सकती है। धोखे और गलत जानकारी पर कार्रवाई यदि कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा है और धोखे से किसी दूसरे व्यक्ति के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहता है, तो रजिस्ट्रार को इसकी सूचना मिलने पर वह स्थानीय पुलिस स्टेशन को सूचित करेगा। इसके बाद दोषी व्यक्ति पर कानून के तहत कड़ी कार्रवाई की जाएगी। यदि कोई व्यक्ति रजिस्ट्रेशन के लिए गलत जानकारी देता है, तो उस पर भी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
- महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा यूसीसी के तहत, लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को भी वैध माना जाएगा और उन्हें शादीशुदा जोड़ों के बच्चों की तरह ही सभी कानूनी अधिकार और संपत्ति में हिस्सेदारी मिलेगी। यदि कोई महिला लिव-इन रिलेशनशिप में है और उसका पार्टनर उसे छोड़ देता है, तो वह कोर्ट के माध्यम से मुआवजे का दावा कर सकती है। अन्य प्रावधान रजिस्ट्रेशन फॉर्म में जोड़ों को अपने पिछले रिलेशनशिप के बारे में भी जानकारी देनी होगी। रजिस्ट्रार के पास दी गई जानकारी की जांच करने के लिए 30 दिनों का समय होगा। यदि वह किसी जोड़े को रजिस्ट्रेशन के लिए अयोग्य पाता है, तो उसे लिखित में इसका कारण बताना होगा। कानून के मुताबिक, केवल विषमलैंगिक (heterosexual) संबंधों को ही लिव-इन रिलेशनशिप के रूप में मान्यता दी जाएगी।
ये सभी बदलाव लिव-इन रिलेशनशिप को अधिक पारदर्शी और सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से किए गए हैं, ताकि इसका दुरुपयोग न हो और इससे जुड़े सभी पक्षों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा हो सके।
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