उत्तराखंड के हनोल में स्थित महासू देवता का मंदिर एक प्राचीन और पूजनीय स्थल है, जिसकी मान्यताएँ और कहानियाँ सदियों पुरानी हैं। यह मंदिर जौनसार-बावर क्षेत्र की संस्कृति और आस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
महासू देवता का परिचय
महासू देवता को भगवान शिव का एक रूप माना जाता है और उन्हें इस क्षेत्र का न्याय का देवता और रक्षक भी कहा जाता है। मान्यता है कि महासू देवता चार भाइयों का समूह है:
- बौठा महासू: इन्हें सबसे बड़ा भाई माना जाता है और इनका मुख्य मंदिर हनोल में ही है।
- वासिक महासू: इनका मंदिर पास के ही गाँव में है।
- पवासी महासू: इनका मंदिर देवदार क्षेत्र में है।
- चालदा महासू: ये हमेशा भ्रमण पर रहते हैं और इनकी पालकी समय-समय पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाई जाती है।
मंदिर का इतिहास और वास्तुकला
- हनोल का महासू देवता मंदिर 9वीं से 10वीं शताब्दी के बीच का माना जाता है।
- यह मंदिर हूण वास्तुकला शैली का एक सुंदर उदाहरण है, जिसमें लकड़ी और पत्थर का बेहतरीन संयोजन देखने को मिलता है।
- मंदिर का निर्माण हूण राजवंश के शासक मिहिरकुल हूण ने करवाया था, जो भगवान शिव के प्रबल भक्त थे।
- मंदिर के गर्भ गृह में केवल पुजारी को ही प्रवेश की अनुमति है, जो एक प्राचीन परंपरा है।
- मंदिर के अंदर एक अखंड ज्योति कई वर्षों से जल रही है, और गर्भ गृह से एक जलधारा भी निकलती है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह रहस्यमय तरीके से गायब हो जाती है।
महासू देवता की मान्यताएँ और पूजा
- महासू देवता को जौनसार-बावर के लोग अपना आराध्य देव मानते हैं। वे फसल, पशुधन और परिवार की सुरक्षा के लिए उनकी पूजा करते हैं।
- लोग अपनी समस्याओं और आपसी विवादों का न्याय पाने के लिए मंदिर में आते हैं। उनका मानना है कि देवता स्वयं उनकी अर्जियाँ सुनते हैं और न्याय करते हैं।
- हर साल अगस्त-सितंबर के महीने में महासू जातरा नामक एक विशेष उत्सव मनाया जाता है। इस दौरान हजारों भक्त यहाँ आते हैं और महासू देवता को प्रसन्न करने के लिए भजन-कीर्तन, नृत्य और विभिन्न अनुष्ठान करते हैं।
- महासू देवता की पूजा में जागरा (रात भर चलने वाला अनुष्ठान) और अन्य पारंपरिक गीत-नृत्य शामिल होते हैं, जो इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति को दर्शाते हैं।
यह मंदिर न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह इस क्षेत्र की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र है|