देवी मंदिर उत्तराखंड के सबसे पूजनीय मंदिरों में से एक है, जो श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच, पवित्र अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर न केवल अपनी धार्मिक महत्ता के लिए जाना जाता है, बल्कि अपने प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के कारण भी विशेष महत्व रखता है।
महत्व और मान्यताएँ
- उत्तराखंड की संरक्षक देवी: माँ धारी देवी को उत्तराखंड की संरक्षक देवी माना जाता है। भक्तों का मानना है कि वह प्राकृतिक आपदाओं और दुर्भाग्य से क्षेत्र की रक्षा करती हैं। चार धाम की रक्षक: उन्हें चार धाम यात्रा के रक्षक के रूप में भी पूजा जाता है। यह मान्यता है कि बिना माँ धारी देवी के दर्शन के चार धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है। काली का स्वरूप: धारी देवी को देवी काली का ही एक रूप माना जाता है। मंदिर में देवी की प्रतिमा का ऊपरी आधा भाग स्थित है, जबकि निचला आधा भाग कालीमठ में स्थित है, जहाँ उन्हें देवी काली के रूप में पूजा जाता है। कालीमठ को 108 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। रूप बदलने वाली देवी: स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, धारी देवी की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। सुबह के समय वे एक कन्या के रूप में, दोपहर में एक युवती के रूप में, और शाम को एक वृद्ध महिला के रूप में दिखाई देती हैं।
मंदिर का इतिहास और किंवदंतियाँ
स्वयंभू प्रतिमा: ऐसी मान्यता है कि धारी देवी की प्रतिमा अलकनंदा नदी में बहती हुई स्वयं यहाँ आकर एक चट्टान पर स्थापित हुई थी। ग्रामीणों ने मूर्ति से विलाप की आवाज़ सुनी और एक पवित्र आवाज़ ने उन्हें मूर्ति को उसी स्थान पर स्थापित करने का निर्देश दिया। 2013 की बाढ़ से संबंध: 2013 में उत्तराखंड में आई विनाशकारी बाढ़ से धारी देवी मंदिर का गहरा संबंध माना जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि यह बाढ़ देवी के क्रोध का परिणाम थी, क्योंकि मंदिर में स्थापित उनकी प्रतिमा को एक जलविद्युत परियोजना के कारण उसके मूल स्थान से हटाया गया था। इस घटना के बाद, प्रतिमा को उसके मूल स्थान पर पुनर्स्थापित किया गया है। अनावरण और खुला आसमान: धारी देवी की मूर्ति को कभी भी पूरी तरह से ढका नहीं जाता है। ऐसी मान्यता है कि देवी को खुली हवा में रहना और नदी की आवाज़ सुनना पसंद है, इसलिए मंदिर स्थायी रूप से खुले आसमान के नीचे रहता है।
कैसे पहुँचे धारी देवी मंदिर सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। वायु मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है, जो मंदिर से लगभग 136 किमी दूर है। रेल मार्ग निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश और हरिद्वार हैं, जो क्रमशः लगभग 124 किमी और 142 किमी दूर हैं। सड़क मार्ग श्रीनगर से यह लगभग 15 किमी और रुद्रप्रयाग से 20 किमी दूर है। दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग 55 पर भी यहाँ पहुँचा जा सकता है।
यात्रा का सबसे अच्छा समय नवंबर से जून तक का समय धारी देवी मंदिर की यात्रा के लिए अनुकूल माना जाता है। नवरात्रि जैसे त्योहारों के दौरान यहाँ भक्तों की भारी भीड़ रहती है, और यह स्थान विशेष रूप से जीवंत हो उठता है।
धारी देवी मंदिर उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो भक्तों और पर्यटकों दोनों को अपनी ओर आकर्षित करता है।