1983 क्रिकेट विश्व कप की कहानी, जिसे आधिकारिक तौर पर प्रूडेंशियल कप ’83 के नाम से जाना जाता है, एक अंडरडॉग टीम की अविश्वसनीय जीत की एक महान गाथा है। यह एक ऐसी जीत थी जिसने भारत में क्रिकेट के चेहरे को हमेशा के लिए बदल दिया।
अंडरडॉग
इस टूर्नामेंट से पहले, भारत क्रिकेट का एक बड़ा केंद्र नहीं था। पिछले दो विश्व कपों में उनका रिकॉर्ड बहुत खराब था, जिसमें उन्होंने केवल एक मैच जीता था। दूसरी ओर, वेस्टइंडीज दो बार की मौजूदा चैंपियन थी और उन्हें लगभग अजेय माना जाता था। उनकी टीम में एंडी रॉबर्ट्स, मैल्कम मार्शल, जोएल गार्नर और माइकल होल्डिंग जैसे दिग्गज तेज गेंदबाज थे। टूर्नामेंट की शुरुआत में, भारत को फाइनल जीतने के लिए 66-1 का मौका दिया गया था।
ग्रुप स्टेज
भारत के अभियान की शुरुआत एक चौंकाने वाली जीत के साथ हुई, जब उन्होंने अपने पहले मैच में शक्तिशाली वेस्टइंडीज को 34 रनों से हराया। यह वेस्टइंडीज की पहली विश्व कप हार थी। हालांकि भारत ने ग्रुप स्टेज में कुछ उतार-चढ़ाव देखे, जिसमें ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज के खिलाफ दूसरे मैच में हार भी शामिल थी, लेकिन एक ऐसा पल था जिसने उनकी यात्रा को परिभाषित किया:
- कपिल देव की जिम्बाब्वे के खिलाफ 175 रन की पारी:* एक करो या मरो के मैच में, भारत 17 रन पर 5 विकेट खोकर बेहद खराब स्थिति में था। जब टीम की स्थिति खराब थी, तब कप्तान कपिल देव आए और उन्होंने एकदिवसीय क्रिकेट की सबसे महान पारियों में से एक खेली। उन्होंने 138 गेंदों में नाबाद 175 रन बनाए, जो उस समय एक विश्व रिकॉर्ड था, जिसने न केवल भारत को बचाया बल्कि उन्हें जीत भी दिलाई। यह पारी दुखद रूप से बीबीसी की हड़ताल के कारण टीवी पर प्रसारित नहीं हुई थी, लेकिन इसकी कहानी हमेशा जीवित रहेगी।
इस शानदार वापसी ने टीम में एक नया आत्मविश्वास और विश्वास पैदा किया, जिससे उन्हें सेमीफाइनल में जगह मिली।
नॉकआउट स्टेज
सेमीफाइनल में भारत का सामना टूर्नामेंट के मेजबान इंग्लैंड से हुआ। सभी उम्मीदों को खारिज करते हुए, भारत के गेंदबाजों ने इंग्लैंड को कम स्कोर पर रोक दिया, और यशपाल शर्मा और मोहिंदर अमरनाथ के शानदार बल्लेबाजी प्रदर्शन से, उन्होंने 6 विकेट से आरामदायक जीत हासिल की।
लॉर्ड्स में फाइनल मुकाबला
25 जून 1983 को, प्रतिष्ठित लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड में, भारत का सामना फाइनल में एक बार फिर वेस्टइंडीज से हुआ।
- भारत की पारी: वेस्टइंडीज ने टॉस जीतकर भारत को बल्लेबाजी के लिए आमंत्रित किया। भारत के बल्लेबाज दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजों के सामने संघर्ष करते रहे और केवल 183 रन पर ऑल आउट हो गए। कृष्णमाचारी श्रीकांत के 38 रन के अलावा कोई भी बल्लेबाज ज्यादा देर तक नहीं टिक सका। विव रिचर्ड्स और क्लाइव लॉयड जैसे खिलाड़ियों के सामने यह कुल स्कोर बहुत कम लग रहा था।
- वेस्टइंडीज का पीछा: वेस्टइंडीज का पीछा आत्मविश्वास से शुरू हुआ, जिसमें एक शक्तिशाली विव रिचर्ड्स मैच को जल्दी खत्म करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन फिर एक ऐसा मोड़ आया जो क्रिकेट इतिहास में दर्ज हो गया है। मदन लाल, जिन्हें रिचर्ड्स ने अपने पिछले ओवर में तीन चौके मारे थे, ने कपिल देव से एक और ओवर देने का अनुरोध किया। कपिल ने अपने गेंदबाज पर भरोसा करते हुए सहमति व्यक्त की। अगली ही गेंद पर, रिचर्ड्स ने एक पुल शॉट खेला, जिससे गेंद हवा में ऊंची चली गई। कपिल देव, गेंद पर अपनी नजर रखते हुए पीछे की ओर दौड़कर एक शानदार कैच लिया। वेस्टइंडीज के दिग्गज बल्लेबाज 33 रन पर आउट हो गए, और मैच का रुख नाटकीय रूप से बदल गया।
- गेंदबाजी का कमाल: उसके बाद, मोहिंदर अमरनाथ और मदन लाल के नेतृत्व में भारतीय गेंदबाज आग उगल रहे थे। उन्होंने लगातार अंतराल पर विकेट लिए, जिससे वेस्टइंडीज के शक्तिशाली बल्लेबाजी क्रम को ध्वस्त कर दिया। अमरनाथ और लाल ने तीन-तीन विकेट लिए, जबकि बलविंदर संधू ने दो महत्वपूर्ण विकेट लिए। वेस्टइंडीज दबाव में बिखर गई, और अंततः सिर्फ 140 रनों पर ऑल आउट हो गई।
भारत ने 43 रनों से विश्व कप जीत लिया था।
विरासत
यह जीत सिर्फ एक ट्रॉफी से कहीं बढ़कर थी; यह भारतीय क्रिकेट के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण था। इसने साबित कर दिया कि भारत दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकता है और उन्हें हरा सकता है। इस जीत ने देश में एक क्रिकेट क्रांति ला दी, जिससे सचिन तेंदुलकर जैसे युवा खिलाड़ियों की एक नई पीढ़ी को प्रेरणा मिली, और क्रिकेट एक राष्ट्रीय जुनून में बदल गया। यह आशा, लचीलेपन और विश्वास की एक कहानी थी जो लाखों लोगों को प्रेरित करती रही है।