बादल फटने का मतलब यह नहीं है कि बादल फटकर टुकड़ों में बिखर जाते हैं, बल्कि यह एक ऐसी मौसमी घटना है जिसमें किसी खास जगह पर बहुत कम समय में मूसलाधार बारिश होती है। इसे वैज्ञानिक भाषा में “क्लाउडबर्स्ट” कहते हैं।
बादल कैसे और क्यों फटते हैं?
यह घटना तब होती है जब नम और गर्म हवाएं तेजी से ऊपर की ओर उठती हैं। ये हवाएं अपने साथ नमी यानी पानी की बूंदें लेकर जाती हैं। ऊपर जाकर, ये हवाएं ठंडी हो जाती हैं और नमी पानी की बूंदों में बदल जाती है।
- नमी का जमाव: जब ये पानी की बूंदें एक-दूसरे से मिलती हैं, तो इनका आकार और वजन बढ़ जाता है। हवा की ताकत इन भारी बूंदों को ऊपर नहीं ले जा पाती, जिससे ये बूंदें एक ही जगह पर बादलों में जमा होने लगती हैं।
- पहाड़ी इलाकों का प्रभाव: यह घटना अक्सर पहाड़ी इलाकों में ज्यादा होती है। जब नम हवा से भरे बादल पहाड़ के ऊंचे ढलानों से टकराते हैं, तो उन्हें आगे जाने का रास्ता नहीं मिलता। इससे वे एक ही जगह पर रुक जाते हैं और बादलों के अंदर पानी का दबाव बहुत बढ़ जाता है।
- अचानक बारिश: जब बादल इस दबाव को सह नहीं पाते, तो उसमें जमा हुआ सारा पानी अचानक और बहुत तेजी से नीचे गिरता है। इसी को बादल फटना कहते हैं। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, जब किसी छोटे से क्षेत्र में (लगभग 20-30 वर्ग किलोमीटर) एक घंटे में 100 मिलीमीटर या उससे ज्यादा बारिश होती है, तो उसे बादल फटना कहा जाता है।
बादल फटने के कारण:
- भौगोलिक कारण: पहाड़ों की बनावट और ऊंचाई नम हवाओं को रोकती है, जिससे बादल एक जगह पर जमा हो जाते हैं।
- तेजी से संघनन (Condensation): जब गर्म हवा की नमी अचानक ठंडी हवा के संपर्क में आती है, तो पानी की बूंदें बहुत तेजी से बनती हैं और भारी होकर गिरने लगती हैं।
- जलवायु परिवर्तन: विशेषज्ञों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से भी ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं। गर्म हवा में ज्यादा नमी होती है, जिससे बादलों में पानी की मात्रा भी बढ़ जाती है।
बादल फटने से अचानक बाढ़, भूस्खलन (लैंडस्लाइड), और जान-माल का भारी नुकसान हो सकता है, खासकर पहाड़ी और नदियों के किनारे बसे इलाकों में।