slot 1000 togel online slot toto toto slot mahjong ways agen gacor toto slot gacor agen gacor situs toto Sv388 slot pulsa agen slot apo388 sv388 slot toto slot deposit 1000
गैरसैंण, इंतज़ार में गुज़रे 25 साल -

उत्तराखंड के गठन से पहले ही, गैरसैंण को राजधानी के रूप में देखा जा रहा था क्योंकि यह राज्य के दोनों मंडलों, गढ़वाल और कुमाऊं, के बीच में स्थित है. इस केंद्रीय स्थान के कारण, यह माना गया था कि इससे दोनों क्षेत्रों के लोगों को समान रूप से लाभ मिलेगा और विकास भी संतुलित होगा.

जब साल 2000 में उत्तराखंड का गठन हुआ, तो देहरादून को अस्थाई राजधानी बनाया गया. लोगों को उम्मीद थी कि समय के साथ, जब सभी व्यवस्थाएं सुचारू हो जाएंगी, तो गैरसैंण को ही स्थायी राजधानी बना दिया जाएगा. लेकिन, 25 साल बीत जाने के बाद भी, गैरसैंण को सिर्फ आश्वासन ही मिले हैं.

इन 25 सालों में गैरसैंण में कई सत्र आयोजित किए गए और उसके बाद सरकारों ने खूब अपनी पीठ थपथपाई| कई बार तो गैरसैंण में सत्र आयोजित न होने के पीछे ठंड का बहाना अक्सर दिया जाता है, जो एक कमज़ोर तर्क लगता है. दुनिया के कई देशों की राजधानियाँ, जैसे रूस और ब्रिटेन, जहाँ तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है, वहाँ भी सरकारी काम बिना रुके चलते रहते हैं. इससे पता चलता है कि यह सुविधा या आराम की बात ज़्यादा है, न कि मौसम की. यह एक राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाता है, जहाँ सरकारें इस मुद्दे पर ठोस कदम उठाने के बजाय टाल-मटोल करती रही हैं. हालांकि, उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) जैसी पार्टियाँ इस मुद्दे को उठाती रही हैं, लेकिन सत्ता में न होने के कारण वे इसे लागू नहीं कर पाईं.

खैर, फिलहाल गैरसैंण में राजधानी के बुनियादी ढाँचे पर 8,000 करोड़ खर्च हो चुके हैं, पर गैरसैंण की आँखों में बस बचा है तो इंतज़ार…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *