उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 8 सितंबर 2025 को राज्य की सभी निचली अदालतों को निर्देशित किया कि वे लंबित बाल तस्करी मामलों का निपटारा आगामी छह महीनों के भीतर करें। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2025 के आदेश के आधार पर जारी किया गया है, जिसमें बाल तस्करी के मामलों में देरी को गंभीरता से लिया गया है।
आदेश का विवरण
- न्यायिक अधिकारियों को निर्देश: उच्च न्यायालय ने राज्य के सभी जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को एक सर्कुलर जारी किया है, जिसमें लंबित बाल तस्करी मामलों के शीघ्र निपटारे की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
- सुप्रीम कोर्ट का संदर्भ: यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के 15 अप्रैल 2025 के आदेश से प्रेरित है, जिसमें ‘पिंकी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य’ मामले में बाल तस्करी के मामलों में देरी को अस्वीकार्य बताया गया था।
- न्यायिक प्रक्रिया की त्वरितता: यदि आवश्यक हुआ, तो उच्च न्यायालय ने दिन-प्रतिदिन सुनवाई की संभावना भी व्यक्त की है, ताकि इन संवेदनशील मामलों में त्वरित न्याय सुनिश्चित किया जा सके।
कानूनी प्रभाव
- अवज्ञा की चेतावनी: न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि न्यायिक अधिकारियों ने इस आदेश का पालन नहीं किया, तो उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की जा सकती है।
- सामाजिक सुरक्षा पर प्रभाव: बाल तस्करी के मामलों में देरी से पीड़ित बच्चों की सुरक्षा और न्याय में विफलता होती है, जिससे समाज में असुरक्षा की भावना बढ़ती है।
- निष्कर्ष
उच्च न्यायालय का यह आदेश राज्य में बाल तस्करी के मामलों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। सुप्रीम कोर्ट के मार्गदर्शन के तहत, राज्य की न्यायिक प्रणाली ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि ऐसे संवेदनशील मामलों में देरी न हो और पीड़ितों को शीघ्र न्याय मिले।